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भारतीय इस्लाम के आंतरिक रहस्यमय आयाम में सूफ़ी संत फ़कीर शाह मलंग समाज का इतिहास 

सूफ़ी किसे कहते हैं?  किसी मुस्लिम संत फ़कीर या दरवेश के लिए प्रयोग किया जाने वाला शब्द है।

सूफीवाद किसे कहते हैं ?  यह इस्लाम के आंतरिक रहस्यमय आयाम को संदर्भित करता है जिसके अंतर्गत भारतीय संस्कृति परिवेश में सूफीवाद को समझने के लिए हमेशा से ही लोग खिंचे चलें आते हैं इस्लाम के भाई चारे और शांती के सन्देश को फैलाने के लिएँ आए दरगाहों पर मुरादे मांगने वालों की भीड़ यकीनन चौखट से ही उनकी झोलियाँ भरती हैं। वही  खानखाहों से लंगर बटते और लोगों की मुश्किलों को हल करने की कोशिश की जाती. वही लोबान, वही मन्नती धागे , सूफियाना कलाम ,क़व्वाली की महफ़िल, सूफी संगीत के साथ साथ सूफी डांस भी सूफ़ीवाद की लोकप्रियता का जीता जागता उदाहरण है।

सूफी मुसलमान किसे कहते हैं?
सूफ़ियत का इस्लाम से कोई लेना देना नहीं है.

सूफ़ीयों के सरनेम कितने होते हैं?
शाह, सांई, अलवी, दीवान, मदारी, दरवेश, छप्परबन्द, कलन्दर, कादरी, नक्शबंदी, सुहवर्दी, अशरफी, अत्तारी, ताजी, वारसी, जोगी और चिश्ती सूफी प्रमुख आदेश हैं। शतारी सूफी आदेश, सुहरावर्दी सूफी आदेश की शाखा है। अतः सूफ़ी समाज अपने नाम के आगे या पीछे उपरोक्त सरनेम लगाते हैं।

सूफियों का लक्ष्य है?
सूफियों के प्यार भरे इस्लामी सन्देश की ही कशिश है कि आज भी देश में ऐसी सैंकड़ों दरगाहें हैं जिनकी देख रेख ग़ैरमुस्लिम कर रहे हैं.लेकिन सूफियों में दरगाह खानकाह मज़ार तकिया चिल्ले आदि की विरासत को आगे बढाने की प्रमुख जिम्मेदारी जिंदा शाह मदारी सिलसिले के शाहों की होती है यही सूफ़ियत उदारवादी इस्लामी सन्देश देता है। यह इस्लाम के ऐसा आंतरिक रहस्यमय मार्ग सुझाता है जिसकी सहायता से आदमी समाज का अंग रहते हुए इस दुनिया की बुराइयों से बचा रहे।

सूफ़ी सन्त?  इस्लाम में सूफी सन्तों को इसीलिये फकीर कहा जाता है क्योंकि फकीर का अरबी भाषा के शब्द फक़्र से बना है जिसका अर्थ होता गरीब। वे गरीबी और कष्टपूर्ण जीवन जीते हुए दरवेश के रूप में आम लोगों की बेहतरी की दुआ माँगने और उसके माध्यम से इस्लाम पन्थ के प्रचार करने के साथ-साथ शिक्षा-दीक्षा भिक्षावृत्ति पूजा-पाठ किया करते हैं। जिस प्रकार हिन्दुओं में साधु, संन्यासी, विरक्त,महात्मा, स्वामी, योगी  या त्यागी पुरुष, व बौद्धों में बौद्ध भिक्खु को सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त है उसी प्रकार मुसलमानों में भी फकीरों को वही दर्ज़ा दिया जाता है। यही नहीं, इतिहासकारों ने भी यूनानी सभ्यता की तर्ज़ पर ईसा पश्चात चौथी शताब्दी के नागा लोगों एवं मुगल काल के फकीरों को एक समान दर्ज़ा दिया है।

मलंग की परिभाषा?
मलंग एक अनिश्चित मूल का शब्द है, जो एक भटकते ब्रह्मचारी भिक्षुक या सूफी संत के मंदिर के (अर्ध-) स्थायी निवासी को दर्शाता है, जिसने कथित तौर पर दुनिया को त्याग दिया है और खुद को भगवान की मंगेतर या दुल्हन की तरह देखता है। मृत संत होते हैं.
जिसका का मतलब किसी मे खोया हुआ निश्चिंत तथा मस्त व्यक्ति यह एक प्रकार का मुसलमान फ़कीर (साधु) होते हैं जो निश्चिंत तथा मस्त रहते हैं।

सूफी-संतों का उपनाम शाह ?
शाह फ़ारसी भाषा से लिया गया है, शाह का अर्थ है 'बहुत बड़ा'। अर्थात जो जनता में सबसे बड़ा हो उसे शाह (राजा) कहते है।
भारत में आए पहले सूफी संत फ़कीर हजरत बदिउद्दीन जिंदा शाह मदार सभी ने शाह उपनाम लगाया और धार में राजा भोज के काल में 1000 ईस्वी में तशरीफ़ लाए शाह चंगाल ने भी शाह उपनाम लगाया। भारत के उत्तरप्रदेश के मकनपुर में मदार शाह रह0 की दरगाह है । मदार शाह ने इस्लाम धर्म का प्रचार सारे भारतवर्ष में ही नहीं किया बल्कि पूरी दुनिया में हजरत जिंदा शाह मदार ने इस्लाम धर्म का प्रचार किया।
भारत के कोने-कोने में, जंगलों में, वीरानों में, पहाड़ों और आबादियों में जहाँ-जहाँ भी नजरे जाती है किसी ना किसी अल्लाह के वली की समाधि दिखाई देती है ये सभी सूफी संत शाह है।
शाह मुस्लिम जाति के लोग ज्यादातर एशिया में निवास करते है। भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान और नेपाल में शाह उपनाम वाले निवासी मिल जायेंगे।

टिप्पणी ?  वर्तमान भारतीय मुस्लिम समुदाय परिपेक्ष्य में  फ़कीर मूल जाति और उसके सरनेम उपजाति शाह, सांई, अलवी, दीवान, मदारी, दरवेश छप्परबन्द, कलन्दर, चिश्ती, क़ादरी, वारसी, नक्शबंदी के रूप में मुस्लिम पसमांदा समाज के पिछड़ी जाति सूची में अंकित है। मुस्लिम मूल जाति फकीर में और शाह आदि सरनेम रखने वालों को उन्हें घुमंतु विमुक्त, बिलुप्त होती जाति मानते हुए भारत सरकार को आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, शैक्षणिक विकास पर बल देने की आवश्यकता है।

मान्यताएं ? शाह उपनाम वाले सैयद जाति से होते हैं चूंकि फ़ातेमा और अन्य पत्नियों से पैदा हुए बच्चों के पिता हजरत अली ही है इसलिए सैयद वंश के लोग सरनेम में अपने बाप हजरत अली का नाम भी उपनाम की तरह लिखते है। सैयद जाति में बैग, अमीर और शाह भी लक़ब है। शाह को फ़कीर भी कहा जाता है। फ़क़ीर के लफज़ी मायने जरूरतमंद है। अलवी या अल्वी एक बहु-प्रचलित मुस्लिम उपनाम है। इसका अर्थ इस्लाम के चौथे खलीफा अली से सम्बंधित या उनके वंश से जुड़े लोग हैं उन्हें भी फ़कीर कहा जाता है।
संकलन:- ताहिर शाह, चांदनी शाहबानो राष्ट्रीय संयोजक मुस्लिम राष्ट्रीय मंच सूफी संत फकीर शाह मलंग प्रकोष्ठ, सौजन्य से:- राष्ट्रीय शाह समाज फाउंडेशन इंडिया ट्रस्ट

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