ज्ञापन
महामहिम राज्यपाल महोदया
उत्तर प्रदेश, राजभवन, लखनऊ
विषयः किसान एवं श्रमिक विरोधी विधेयकों का विरोध, वापस लिए जाने की मांगः
महोदया,
केन्द्र और प्रदेश की भाजपा सरकारों की नीतियों से किसान और श्रमिकों
के हितों को गहरा आघात लग रहा है। इन नीतियों से कारपोरेट घरानों को ही
फायदा होगा जबकि किसानों और श्रमिकों की बदहाली और बढ़ेगी। कृषि और
किसान के साथ श्रमिक ही कठिन समय में देश की अर्थ व्यवस्था को सम्हालता
है पर अब अन्नदाता को ही हर तरह से उत्पीड़न का शिकार बनाया जा रहा है।
यदि समय रहते कृषि और श्रमिक कानूनों को वापस नहीं लिया गया तो प्रदेश में
खेती बर्बाद हो जाएगी और श्रमिक बंधुआ मजदूर बनकर रह जाएंगे।
किसानों के सम्बंध में भाजपा सरकारों का रवैया पूर्णतया अन्यायपूर्ण है।
वह खेतों से किसानों का मालिकाना हक छीनना चाहती है। इससे एमएसपी
सुनिश्चित करने वाली मंडिया धीरे-धीरे खत्म हो जाएंगी। किसानों को फसल का
लाभप्रद तो दूर निर्धारित उचित दाम भी नहीं मिलेगा। फसलों को आवश्यक वस्तु
अधिनियम से बाहर किए जाने से आढ़तियों और बड़े व्यापारियों को किसानों का
शोषण करना आसान हो जाएगा।सच तो यह है कि लम्बे संघर्ष के बाद किसानों को जो आजादी मिली
थी, कांट्रैकट खेती से वह देर सबेर फिर पुराने हाल में लौट आएगा और अपनी
ही खेती पर मजदूर हो जाएगा। तंगहाली में किसान आत्महत्या के लिए विवश
होगा। पिछले पांच वर्षों में हजारों किसान अपनी जान गंवा बैठे हैं। गन्ना किसानों
का अभी तक 13 हजार करोड़ रूपया बकाया है। किसान को फसल की लागत
से डयोढ़ी कीमत देने, आय दुगनी करने और सभी कर्जे माफ करने के वादे जब
हवा में रह गए तो भाजपा नेतृत्व के किसानों के समर्थन में दिए गए भाषणों पर
कौन भरोसा करेगा?
प्रदेश में अन्ना पशु किसानों की फसल बर्बाद कर रहे हैं। खेत मालिक
चौकीदार बनकर रात-रात भर खेत की रखवाली करते हैं। सड़कों पर इनके
कारण दुर्घटनाएं होती रहती हैं। सरकार इनकी रोकथाम के लिए कुछ नहीं कर
रही है।
भाजपा सरकार की नीति देश की सम्पदा को निजी क्षेत्रों में सौप देने
की है। उसकी निजीकरण के प्रति दुराग्रह के चलते रोजगार की सम्भावनाएं
धूमिल हो चली है। कोरोना संकट के दौर में लाखो श्रमिकों का पलायन हुआ।
लॉकडाउन ने उनकी नौकरियां छीन ली। संयुक्त राष्ट्र संघ के अंतर्राष्ट्रीय श्रम
संगठन की रिपोर्ट में संकेत है कि कोरोना काल में 40 करोड़ रोजगार खत्म हो
सकते हैं। श्रम मंत्रालय का अनुमान है कि प्रदेश में 14.62 लाख की संख्या नौकरी
मांगने वालो की है।
कृषि अध्यादेश के बाद भाजपा सरकार श्रमिक विरोधी औद्योगिक सम्बंध
संहिता-2020 विधेयक ले आई है। श्रमिक कानून में बदलाव के बाद तो श्रमिकों
का शोषण करने का पूरा अधिकार फैक्ट्री मालिकों को मिल जाएगा। अभी तक
100 कर्मचारी वाले औद्यौगिक प्रतिष्ठान बिना सरकारी मंजूरी लिए कर्मचारियों को
हटा नहीं सकते थे। नई व्यवस्था में 300 से ज्यादा कर्मचारियों वाली कम्पनी
सरकार से मंजूरी लिए बिना जब चाहे कर्मचारियों को नौकरी से निकाल बाहर
कर सकती है।
नए प्राविधान से अब बड़े फैक्ट्री मालिकों के हाथ में छंटनी का ऐसा
हथियार आ गया है जिसका दुरूपयोग करके और दबाव डालकर एक तो कर्मचारी यूनियन ही बनने नहीं देंगे, दूसरे अपने कर्मचारियों को छंटनी का जब तब भय
दिखाकर उन्हें बंधुआ मजदूर बनाकर रखने को स्वतंत्र होंगे। भाजपा कर्मचारियों
के हितों की हत्या कर मालिकों को मलाई बांटने का काम कर रही है।
भाजपा किसानों और श्रमिक वर्ग का मनोबल तोड़ने, उन्हें असहाय बनाने
की साजिश में जुट गई है। इससे साबित हो गया है कि किसानों को फायदा
पहुंचाने और श्रमिकों को रोजगार देने के उसके दावे सिर्फ सफेद झूठ है। इन
कानूनों को वापस लिया जाना चाहिए। ऐसी झूठी और प्रपंच रचने वाली सरकार
के खिलाफ जनता में भारी आक्रोश है।
अतः आपसे अनुरोध है कि किसानों और श्रमिकों के हितों की सुरक्षा
के
लिए आप कृषि विधेयक तथा श्रम कानूनों को वापस लेने और राज्य में लागू न
करने के निर्देश देने का कष्ट करें।
जिलाध्यक्ष नगीना प्रसाद साहनी जियाउल इसलाम अखिलेश यादव प्रहलाद यादव अवधेश यादव रजनीश यादव विजय बहादुर यादव गीतांजलि यादव मुन्नी लाल यादव जितेंद्र सिंह सिहांसन यादव मनोज यादव राहुल गुप्ता बिंदा देवी हाजी शकील अंसारी संजय पहलवान नौशाद अहमद त्रिलोकी यादव अभिषेक यादव धर्मेंद यादव अजय यादव संतोष यादव भृगुनाथ निषाद अब्दुल कयूम आदि मौजूद रहे
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