" कहीं अकर्मण्य न कर दे मेहनतकश को ...
कवि डॉ 0 अशोक अग्रहरि प्रतापगढ़ .....
जहाँ एक तरफ कोरोना से काल कवलित व्यक्तियों के परिजनों, बुरी तरह से प्रभावित परिवारों के साथ आर्थिक रूप से विपन्न, असक्तों को बेशक मुफ्त राशन वितरण से फौरी तौर पर भारी राहत मिली है, वहीं दूसरी तरफ कई महीने यही प्रक्रिया लागू रहने से इस योजना से लाभान्वित हो रहे लोगों में अकर्मण्यता, परावलम्बन , कार्य क्षमता में गिरावट तथा सबसे बड़ी बात मुफ्तखोरी की प्रवृत्ति के जन्म लेने की भी सम्भावना से कतई इनकार नहीं किया जा सकता, बेशक पीड़ितों, बॅचितों, गरीब गुरबों की ऑड़े वक्त पर मदद करना सरकार की जिम्मेदारी तथा राजधर्म है, मगर दूरगामी परिणाम पर नजर रख रणनीति तैयार कर उसका क्रियान्वयन करना भी सरकार की जिम्मेदारी तथा राजधर्म है, बेहतर होता कि ऐसे समय में सरकारी तथा प्राइवेट शिक्षण संस्थानो को अनुदानित कर छात्र छात्राओं की फीस, कापी किताब मुफ्त करने के साथ ही सर्वेक्षण कराकर निराश्रित, आर्थिक रूप से विपन्न परिवारों के युवाओं को रोजगार, बीमारों को चिन्हित कर मुफ्त दवा इलाज का प्रबन्ध करती, लगातार पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस के दामों में इजाफे से कराह रही जनता जनार्दन को महॅगाई पर अंकुश लगाते हुए दाम कर भी राहत देने का उपक्रम सरकार की उत्तम नीति की बड़ी बानगी पेश कर सकती है, गर सरकार की नीति और नीयत साफ़ है तो, वर्ना जनता तो बेचारी है ही, पिसना, घुटना और बरदाश्त करना भी उसकी नियति है ।
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