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*राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ गोरखपुर महानगर का पथसंचलन कार्यक्रम महाराणा प्रताप इंटर कॉलेज में आयोजित हुआ* 

*वरिष्ठ संवाददाता-बीपीमिश्र*

गोरखपुर। महानगर के  दोनों भागों से 10-10 नगरों की अलग-अलग पंक्तियों में खड़े उत्तर भाग से आर्यनगर हनुमान नगर, गोरक्ष नगर ,विकास नगर, राती नगर राम जानकी नगर विष्णु नगर, राघव नगर, सैनिक नगर ,बिस्मिल नगर, के क्रम में तथा दक्षिणी भाग से क्रमशः दीनदयाल नगर,  मालवीय नगर, पटेल नगर, बुद्ध नगर, आजाद नगर, नौसढ़ नगर, विवेकानंद नगर, आर्य नगर, प्रेमचंद नगर ,गीता नगर, के क्रमशः व्यवस्थित रचना में खड़े हुए। 
इस अवसर पर वाध्य यंत्रों एवं घोष के साथ परम पूज्य श्री भगवा ध्वजारोहण किया गया। इस अवसर पर मंच पर मुख्य वक्ता के रूप में माननीय प्रांत प्रचारक श्रीमान सुभाष जी, कार्यक्रम की अध्यक्षता पूज्य आचार्य मिथिलेश नंदनी शरण जी, माननीय प्रांत संघचालक डॉ पृथ्वीराज जी एवं माननीय सह विभाग संघचालक श्रीमान आत्मा सिंह जी मंचस्थ हुए।सर्वप्रथम भारत मां के चित्र पर पुष्पार्चन के साथ अतिथियों ने मंच पर स्थान ग्रहण किया। मंचस्थ अधिकारियों एवं मनीषियों का परिचय डॉक्टर उमेश जी विभाग कार्यवाह द्वारा दिया गया।संक्षिप्त परिचय के बाद अमृत वचन एवं एकल गीत के बाद माननीय प्रांत प्रचारक व सभी शिक्षकों का उद्बोधन एवं मार्गदर्शन दिया गया। सुभाष जी ने कहा कि हमारे देश में उत्सवों को मनाने की परंपरा है उसी क्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ 6 उत्सव मनाता है इन 6वो उत्सवों का राष्ट्रीय एवं  सामाजिक महत्व को बताते हुए कहा कि उसके पीछे संघ की एक दृष्टि है जो अपने देश प्रगति एवं पोषण के लिए होता है हम आज वर्ष प्रतिपदा का उत्सव मनाने के लिए एकत्र हुए हैं इस तिथि पर परम पिता ने अपनी उत्पत्ति के लिए वर्ष प्रतिपदा का चयन किया, क्योंकि इस सृष्टि की उत्पत्ति इसी दिन हुए, 
 स्वामी विवेकानंद ने कहा कि हमें अपने गौरव को पहचानने के लिए अपनी गौरवशाली तिथियों का स्मरण जरूरी है पूरे विश्व के लोग तिथि के आकलन में 2023 वर्ष के पूर्ण का अंदाजा लगाना मुश्किल है  परंतु हमारे मनीषियों ने उसके परे जाकर सृष्टि की उत्पत्ति से लेकर आडूओ एवं परमाणुओं की स्थिति का सटीक आकलन करने की तीव्र मेधा से परिपूर्ण थे।इसलिए मन्वंतर से लेकर कई युगों के चरणों का सटीक विश्लेषण किया है इसी के साथ काल के सटीक गणना के साथ युग मन्वंतर कल्प एवं अन्य संयो के साथ सृष्टि की उत्पत्ति एवं इसके लय एवं प्रलय की सटीक गणना उपलब्ध है सभी कार्यों के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है जिसके लिए सूर्य पृथ्वी को ऊर्जा देता है पश्चात के लोगों ने पहले कहा था सूर्य पृथ्वी का चक्कर लगाता है परंतु हमारे मनीषी हमेशा से मानते थे कि जिसे ऊर्जा की आवश्यकता होती है वह ऊर्जा के स्रोत का परिक्रमा करती है वहीं बाद में सत्य सिद्ध हुआ जहां तक काल की गणना के आधार पर कैलेंडर बनाने की पश्चात की परंपरा थी वह तो अपने महीनों के नाम अपने राजा के नाम पर रखते थे पर हमारे यहां गणना सूर्य चंद्रमा की गति के साथ नक्षत्रों के नाम एवं आकलन किया जाता है इसीलिए हमारे यहां ग्रहों के आधार पर दिनों के नाम रखे गए है।आजादी के बाद भारत का कैलेंडर बनाने के लिए एक समिति बनी जिसके अध्यक्ष मेघना शाह को बनाया गया है जिन्होंने विक्रम संवत को अंगीकृत करने के लिए कहा लेकिन तत्कालीन भारतीय जिनका मन अंग्रेजियत से प्रभावित था ।।उन्होंने इसे लागू नहीं किया जबकि विक्रम संवत का प्रारंभ हमारे लिए संकल्प का दिवस के रूप में अंगकृत करना चाहिए था क्योंकि यही शालिवाहन का भी जन्मदिन है इन्होंने तो मिट्टी के सैनिकों को भी तेज तेज भर कर हिंदू संस्कृत की रक्षा की थी हमारा संकल्प है जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।लोक मंगलकारी तिथि पर प्रारंभ कार्य भी लोक मंगलकारी होगा है इसीलिए प्रभु श्रीराम के प्रकटय के लोक मंगलकारी समय के साथ ही राम राज्य की स्थापना हुई।हमारी पूर्ण संस्कृति के लिए दो संकल्प आज भी प्रासंगिक हैं जिससे अनुसार अनु हम हर अच्छी चीज को ग्रहण करने के लिए तैयार हैं एवं विश्व कल्याण के लिए प्रतिबद्ध हैं हमारी संस्कृति की संकल्पना है कि हर मनुष्य श्रेष्ठ बन सकता है इसलिए तो डाकू अंगुलिमाल भी कहता हैं बुद्धम शरणम गच्छामि, संघम शरणम गच्छामि।लोग कहते हैं 1498 में वास्को डी गामा ने भारत की खोज किया था यह कितनी मूर्खतापूर्ण बात है क्या इसके पहले भारत कहीं गुम हो गया था दरअसल वह तो एक विदेशी व्यापारी लुटेरा था जिसने एक चर्च बनाया एवं हमारी भोली जनता को ठग कर इसका मताअंतरण कर मसाले एवं कपड़े के व्यापार के साथ अपने हीतो हेतु भरपूर लूट मचाई ऐसे लुटेरे घृणा के पात्र हैं ।जरा सोचिए कि हमारी संस्कृति के लिए कितना सडयंत्र किया गया हमारे देश का 2 नाम दे दिया भारत एवं इंडिया कर दिया, ताकि लोग इंडिया के नाम के साथ अपनी संस्कृति को भूल जाए एवं उससे कट जाए, अरे अपने देश की नारियों में हाड़ारानी के त्याग की कहानी भी है जिन्होंने अपने पति रतन सेन यको युद्ध भूमि में अपना कटा सिर भेंट कर दिया था चाहे गुरु गोविंद के त्याग की कहानी या लक्ष्मीबाई की कहानी हो सब भारत की संस्कृति के लिए हंसते हुए अपने प्राण का संकल्प कर दिया।जो लोग खालीस्तान की बात करते हैं मैं कहता हूं पूरा भारत ले लो पर उसकी रक्षा एवं पोषण का संकल्प गुरु गोविंद जी एवं अंगद देव की तरह तो करो ।
आजादी की लड़ाई के समय डॉक्टर हेडगेवार ने कहा था कि भारत की स्वतंत्रता तो आएगी ही परंतु स्वाधीनता के बाद भारत के सुसंस्कृत एवं बहू यामी समुतम विकास के लिए सार्थक प्रयास करना आवश्यक है ।आखिर यह कैसे होगा इसके लिए उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की जिस हेतु हेडगेवार जी ने संघ शिक्षा वर्ग में नागपुर में लघु भारत का रेखा चित्र खींचा था आज भी हम उसी की पूर्ति के लिए कृत संकल्पीत है यही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का आज भी संकल्प है इसी की पूर्ति के लिए हम आगे बढ़ रहे हैं  हमारा संकल्प है कि हम संघ के स्वयंसेवक को देखकर लोग जान जाए कि संघ क्या है और कैसा है संघ का स्वयंसेवक सेवा के लिए आता है किसी अभीष्ट के लिए नहीं, हमारे पथसंचलन का अर्थ नेतागिरी एवं शक्ति प्रदर्शन नहीं है बल्कि देश की समृद्धि एवं उसके उत्तरोत्तर विकास का संकल्प है अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में परम पूज्य मिथलेश नदनी सरन जी ने कहा कि किसी से कुछ लेना हो या देना हो तो वह समय पर होना आवश्यक है अन्यथा काल उसे खा जाता है आपने सोए हुए राष्ट्र एवं मरे हुए राष्ट्र को भी परिभाषित करते हुए कहा कि वह राष्ट्र जिसमें रहने वाले व्यक्ति यदि यह मान ले कि उन पर किसी भी तरह का कोई अंकुश नहीं है तो वह मृत राष्ट्र के वासी होते हैं जो सोये एवं जागे राष्ट्र में उपवास या व्रत जैसा अंतर होता है यदि किसी राष्ट्र के सभी नागरिकों का व्रत एक ही हो तो राष्ट्र का एक समुतम राष्ट्र के रूप में विकसित होने अवश्य स्वम्भावी है  इसी के साथ ही रामराज्य का भी प्रारंभ होना सुनिश्चित होता है हम जो पानी चले थे यदि वही मिल जाए तो वह मिल जाए एवं उससे हम पूर्ण संतुष्ट प्राप्त हो तो उसी को दक्षिणा कहते हैं शिक्षा जगत के अंत में अपने अभीष्ट की प्राप्ति ही दीक्षा का उद्देश्य है अभीष्ट की प्राप्ति के लिए निश्चित व्रत का संकल्प आवश्यक है इसी के साथ ही हम डॉक्टर साहब विवेकानंद जी की संकल्पना एवं व्रतों को सुनिश्चित करने वाले व्यक्तियों से ही देश का कल्याण एवं समुतम विकास संभव है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के  सुपथ पर संचलन के लिए शुभकामनाएं, हर व्रत  एवं संकल्प की पूर्ति के लिए पथ संचलन परम आवश्यक है क्योंकि इसी के साथ ही देश और समाज का पथ संचलन सुनिश्चित होता है।पथसंचलन महाराण प्रताप इंटर कॉलेज से निकल गणेश चौराहा,विजय चौराहा,बैंक रोड, बक्शीपुर,रेती चौक,घोष कम्पनी,टाउनहाल,होते हुए पुनः महाराणा प्रताप पर पहुँच समापन हुआ।संचलन का जगह जगह तमाम समाजिक व सांस्कृतिक संगठनों द्वारा पुष्प वर्षा कर स्वागत वंदन व अभिनंदन किया गया।प्रमुख रूप से सह प्रान्त संघचालक डॉ0 महेंद्र अग्रवाल, प्रांत प्रचार प्रमुख उपेन्द्र द्विवेदी,प्रांत सह व्यवस्था प्रमुख हरे कृष्ण,प्रांत बौद्धिक प्रमुख अरविंद सिंह,विभाग प्रचारक अम्बेस्,सह विभाग कार्यवाह संतोष,विभाग शारीरिक प्रमुख रवि,सांसद रवि किशन,विधायक प्रदीप शुक्ला,पुष्पदन्त जैन,रमाशंकर जयसवाल,पुनीत पांडेय आदि उपस्थित रहे।

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