आदि शंकराचार्य की यह प्रतिमा खंडवा जिला के मांधाता पहाड़ी पर है। यहां से लोग नर्मदा नदी के दर्शन कर पाएंगे। आदि शंकराचार्य की प्रतिमा आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास और मध्य प्रदेश राज्य पर्यटन विकास निगम (एमपीएसटीडीसी) के मार्गदर्शन में की गई है।
आदि शंकराचार्य की प्रतिमा को बनाने में खर्च हुए 2,141.85 करोड़ रुपए
सीपी कुकरेजा आर्किटेक्ट्स के मैनेजिंग प्रिंसिपल और इस परियोजना के दूरदर्शी दीक्षु कुकरेजा ने बताया है कि आदि शंकराचार्य के जीवन और दर्शन का सम्मान करने के लिए यह प्रतिमा बनाई गई है। यह महान संत की कृति 'भार्मसूत्र-भाष्य' पर श्रद्धांजलि है।
आदि शंकराचार्य की प्रतिमा को बनाने में मध्य प्रदेश सरकार ने 2,141.85 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। इसके निर्माण के लिए "एकात्म यात्रा" निकाली गई थी। यह यात्रा मध्य प्रदेश के 23,000 ग्राम पंचायतों में गई। इस दौरान प्रतिमा के लिए धातु जमा किया गया। इस प्रतिमा में आदि शंकराचार्य को 12 साल के लड़के के रूप में दिखाया गया है। 12 साल की उम्र में शंकराचार्य ओंकारेश्वर आए थे।
9वीं शताब्दी में शंकराचार्य ने दिया था एकता का मंत्र
आदि शंकराचार्य भारतीय दार्शनिक और धर्मशास्त्री थे। 9वीं शताब्दी में शंकराचार्य के समय हिंदू धर्म में छह प्रमुख संप्रदाय थे। एक देवी मां को समर्पित था और अन्य चार सूर्य, विष्णु, शिव और गणेश को समर्पित थे।
छठा पंथ भगवान स्कंद-कार्तिकेय पर केंद्रित था। इन्हें तमिलनाडु और दक्षिण भारत, श्रीलंका, सिंगापुर, मलेशिया और मॉरीशस के अन्य हिस्सों में तमिलों द्वारा मुरुगन के नाम से जाना जाता था। भारत के आध्यात्मिक परिदृश्य में इन अलग-अलग तत्वों को एकजुट करने में आदि शंकराचार्य ने महत्वपूर्ण योगदान दिया था। उन्होंने एकता का मंत्र दिया था।
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