मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में "शाह मलंग प्रकोष्ठ" को मिला अपना पूरा नाम लिखने का अधिकार शाहमलंग प्रकोष्ठ के स्थान पर लिखा जाएगा "सूफ़ीसन्त शाह मलंग प्रकोष्ठ"
मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में "शाह मलंग प्रकोष्ठ" को मिला अपना पूरा नाम लिखने का अधिकार शाहमलंग प्रकोष्ठ के स्थान पर लिखा जाएगा "सूफ़ीसन्त शाह मलंग प्रकोष्ठ"
दिल्ली: सोमवार, मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की ऑनलाइन राष्ट्रीय कार्यकारिणी मासिक बैठक दिनांक 18.12.23 को समय रात्रि 8.0 बजे सफलता पूर्वक सम्पन्न हुई। जिसमें प्रकोष्ठों की मासिक रिपोर्ट कार्ड प्रकोष्ठों के राष्ट्रीय संयोजको द्वारा प्रस्तुत किया गया बैठक की अध्यक्षता कर रहे मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के वरिष्ठ राष्ट्रीय संयोजक आदरणीय अफज़ाल जी के सम्मुख एवं राष्ट्रीय कार्यालय प्रभारी श्री तुसारकान्त जी की उपस्थिति में सभी प्रकोष्ठों ने अपने-अपने मासिक रिपोर्ट कार्ड की सूचना उपलब्ध करवाएं।
बैठक के मुख्य बिंदुओं में एम.आर.एम. राष्ट्रीय कार्यकारिणी का ध्यान आकर्षित करते हुए शाह मलंग प्रकोष्ठ के तरफ से निम्नलिखित प्रस्ताव प्रस्तुत किये गए।
सूफ़ी एक मुस्लिम संत फ़कीर या दरवेश के लिए प्रयोग किया जाने वाला शब्द है। और सूफ़ीयों के सरनेम शाह, सांई, अलवी, दीवान, मदारी, दरवेश, छप्परबन्द, कलन्दर, कादरी, नक्शबंदी, सुहवर्दी, अशरफी, अत्तारी, ताजी, वारसी, जोगी, चिश्ती और शतारी सूफी प्रमुख आदेश हैं एवं सुहरावर्दी सूफी आदेश की शाखा है। अतः सूफ़ी समाज अपने नाम के आगे या पीछे उपरोक्त सरनेम लगाते हैं।
अतः सूफ़ी सन्तो को इसीलिये फकीर कहा जाता है क्योंकि फकीर का अरबी भाषा के शब्द फक़्र से बना है जिसका अर्थ होता गरीब। वे गरीबी और कष्टपूर्ण जीवन जीते हुए दरवेश के रूप में आम लोगों की बेहतरी की दुआ माँगने और उसके माध्यम से इस्लाम पन्थ के प्रचार करने के साथ-साथ शिक्षा-दीक्षा भिक्षावृत्ति पूजा-पाठ किया करते हैं। जिस प्रकार हिन्दुओं में साधु, संन्यासी, विरक्त,महात्मा, स्वामी, योगी या त्यागी पुरुष, व बौद्धों में बौद्ध भिक्खु को सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त है उसी प्रकार मुसलमानों में भी फकीरों को वही दर्ज़ा दिया जाता है। यही नहीं, इतिहासकारों ने भी यूनानी सभ्यता की तर्ज़ पर ईसा पश्चात चौथी शताब्दी के नागा लोगों एवं मुगल काल के फकीरों को एक समान दर्ज़ा दिया है। मलंग एक अनिश्चित मूल का शब्द है, जो एक भटकते ब्रह्मचारी भिक्षुक या सूफी संत के मंदिर के (अर्ध-) स्थायी निवासी को दर्शाता है, जिसने कथित तौर पर दुनिया को त्याग दिया है और खुद को भगवान की मंगेतर या दुल्हन की तरह देखता है। मृत संत होते हैं.जिसका का मतलब किसी मे खोया हुआ निश्चिंत तथा मस्त व्यक्ति यह एक प्रकार का मुसलमान फ़कीर (साधु) होते हैं जो निश्चिंत तथा मस्त रहते हैं।सूफी-संतों का "शाह" एक बहु-प्रचलित सरनेम (उपनाम) है! अर्थात भारत में आए पहले सूफी संत फ़कीर हजरत बदिउद्दीन जिंदा शाह मदार के अनुवाइयों ने अपने नाम में शाह लगाते हैं। और धार में राजा भोज के काल में 1000 ईस्वी में तशरीफ़ लाए शाह चंगाल ने भी शाह उपनाम लगाया। भारत के कोने-कोने में, जंगलों में, वीरानों में, पहाड़ों और आबादियों में जहाँ-जहाँ भी नजरे जाती है किसी ना किसी अल्लाह के वली की समाधि दिखाई देती है ये सभी सूफी संत "शाह" है।
मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में ऐसे तर्को के साथ शाह मलंग प्रकोष्ठ ने मोटे तौर पर अपने साक्ष्य प्रस्तुत किये। जिसके बाद बैठक की अध्यक्षता कर रहे राष्ट्रीय संयोजक आदरणीय अफज़ाल जी ने शाह मलंग प्रकोष्ठ को अपना पूरा नाम लिखने का अधिकार मांगने पर शाहमलंग प्रकोष्ठ के स्थान पर "सूफ़ीसन्त शाह मलंग प्रकोष्ठ" लिखने की संस्तुति पर मुहर लगाते हुए बैठक को आगे बढ़ा दिया। इसलिए अब से शाहमलंग प्रकोष्ठ के स्थान पर उसका पूरा नाम "मुस्लिम राष्ट्रीय मंच सूफ़ीसन्त शाह मलंग प्रकोष्ठ" के नाम से जाना जाएगा।

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