*संयुक्त परिवार के बदलते प्रतिमान विषयक विशिष्ट व्याख्यान का हुआ आयोजन*
*वरिष्ठ संवाददाता-बीपीमिश्र*
गोरखपुर। गंगोत्री देवी महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय के समाज शास्त्र विभाग द्वारा संयुक्त परिवार के बदलते प्रतिमान विषयक विशिष्ट व्याख्यान का आयोजन किया गया। कार्यक्रम मे मुख्य वक्ता दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के समाज शास्त्र विभाग के सह आचार्य डॉ अनुराग द्विवेदी,मुख्य अतिथि महाविद्यालय की संरक्षिका श्रीमती रीना त्रिपाठी,विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ रचनाकार संजय पति त्रिपाठी,अध्यक्षता महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ पूनम शुक्ल ने किया। विषय प्रवर्तन महाविद्यालय के व्यवस्थापक आशुतोष मिश्र ने व संचालन महाविद्यालय की प्रवक्ता डॉ कामिनी सिंह ने किया। आभार ज्ञापन समाजशास्त्र विभाग की अध्यक्ष डॉ संगीता पांडेय ने किया।कार्यक्रम मे मुख्य वक्ता डॉ अनुराग द्विवेदी ने कहा कि आधुनिक भारत में संयुक्त परिवार संक्रमण की स्थिति से गुजर रहा है। इसके ढांचे, कार्य, आदर्श और नैतिकता में तीव्र गति से परिवर्तन हो रहा है। किसी भी सशक्त देश के निर्माण में परिवार एक आधारभूत संस्था की भांति होता है, जो अपने विकास कार्यक्रमों से दिनोंदिन प्रगति के नए सोपान तय करता है। कहने को तो प्राणी जगत में परिवार एक छोटी इकाई है लेकिन इसकी मजबूती हमें हर बड़ी से बड़ी मुसीबत से बचाने में कारगर है। परिवार से इतर व्यक्ति का अस्तित्व नहीं है इसलिए परिवार को बिना अस्तित्व के कभी सोचा नहीं जा सकता।विशिष्ट अतिथि संजय पति त्रिपाठी ने कहा कि
लोगों से परिवार बनता हैं और परिवार से राष्ट्र और राष्ट्र से विश्व बनता हैं। इसलिए कहा भी जाता है ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ अर्थात पूरी पृथ्वी हमारा परिवार है। ऐसी भावना के पीछे परस्पर वैमनस्य, कटुता, शत्रुता व घृणा को कम करना है। गांवों में रोजगार का अभाव होने के कारण अक्सर एक बड़ी आबादी का विस्थापन शहरों की ओर गमन करता है। शहरों में भीड़भाड़ रहने के कारण बच्चे अपने माता-पिता को चाहकर भी पास नहीं रख पाते हैं। मुख्य अतिथि रीना त्रिपाठी ने कहा कि आधुनिक भारत में संयुक्त परिवार संक्रमण की स्थिति से गुजर रहा है। इसके ढांचे, कार्य, आदर्श और नैतिकता में तीव्र गति से परिवर्तन हो रहा है। विषय प्रवर्तन करते हुए महाविद्याल के व्यवस्थापक आशुतोष मिश्र ने कहा कि भारत में प्राचीन काल से ही संयुक्त परिवार की धारणा रही है। संयुक्त परिवार में वृद्धों को संबल प्रदान होता रहा है और उनके अनुभव व ज्ञान से युवा व बाल पीढ़ी लाभान्वित होती रही है। संयुक्त पूंजी, संयुक्त निवास व संयुक्त उत्तरदायित्व के कारण वृद्धों का प्रभुत्व रहने के कारण परिवार में अनुशासन व आदर का माहौल हमेशा बना रहता है।एकाकी परिवारों की जीवनशैली ने बच्चों का बचपन छीनकर उन्हें मोबाइल का आदी बना दिया है। उपभोक्तावादी संस्कृति, अपरिपक्वता, व्यक्तिगत आकांक्षा, स्वकेंद्रित विचार, व्यक्तिगत स्वार्थ सिद्धि, लोभी मानसिकता, आपसी मनमुटाव और सामंजस्य की कमी के कारण संयुक्त परिवार की संस्कृति छिन्न-भिन्न हुई है। परंपरागत संयुक्त परिवार की एकता में सामूहिक निवास, सामूहिक संपत्ति एवं सामूहिक भोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, किंतु वर्तमान में परिवार के सदस्यों द्वारा अलग-अलग स्थानों पर रहने के कारण सामूहिक पूजा एवं रसोई तो सम्भव नहीं है और संपत्ति का भी विभाजन होने लगा है। इससे परिवार की सामूहिकता समाप्त हुई है व एकांकी प्रवृत्ति प्रबल हुई है। यदि संयुक्त परिवारों को समय रहते नहीं बचाया गया तो हमारी आने वाली पीढ़ी ज्ञान संपन्न होने के बाद भी दिशाहीन होकर विकृतियों में फंसकर अपना जीवन बर्बाद कर देगी।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रही महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ पूनम शुक्ला ने कहा कि वर्तमान में औद्योगिकरण व नगरीकरण के परिणामस्वरूप न केवल व्यावसायिक गतिशीलता बढ़ी है बल्कि एक ही परिवार के लोगों के व्यवसाय और आय में काफी अंतर आया है। उनके सामाजिक परिस्थिति में ही नही बल्कि उनके दृष्टिकोण में भी काफी भिन्नता आयी है। पाश्चात्य प्रभाव के कारण व्यक्ति में उदार, तार्किक और व्यक्तिवादी दृष्टिकोण पनपा है जिसका स्पष्ट प्रभाव पारिवारिक संरचना पर भी देखने को मिलता है। लोगों ने परंपरागत विचारों को त्याग कर नए विचारों को धीरे धीरे ग्रहण करना शुरू किया है और कुछ समय के पश्चात नए विचार पुराने व्यवहार प्रतिमानों को प्रभावित कर पाते हैं। एक पीढ़ी के लोग जब नवीन विचारों को ग्रहण कर लेते हैं तो उनके व्यवहार में थोड़ा बहुत परिवर्तन आता है परंतु उसके बाद वाली पीढ़ी में यह परिवर्तन तेजी से आता है। जिन नवीन विचारों ने भारत में पारिवारिक प्रतिमानो को परिवर्तित करने में योगदान दिया उनमें से मुख्य हैं- प्रत्येक व्यक्ति को उसके विकास के पूर्ण स्वतंत्रता और अवसर प्राप्त हो
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