एकता और विविधता हमारी संस्कृति की पहचान- प्रद्युम्न दुबे
* राम रहस्य महाविद्यालय में सांस्कृतिक जीवन एवं मातृभाषा विषयक संगोष्ठी संपन्न
सिंहपुर।हमारा सांस्कृतिक जीवन बदल रहा है,यह हमारी विवशता और आवश्यकता दोनों है।आज अंग्रेजी विकास की भाषा बन गई है भाषा के बदलाव के कारण हमारे सांस्कृतिक मूल्य बदलते जा रहे हैं ।
उपरोक्त आशय का विचार पूर्व प्रधानाचार्य एवं शिक्षाविद प्रद्युम्न दुबे ने व्यक्त किया। वे सोमवार को क्षेत्र के राम रहस्य महाविद्यालय में आयोजित 'सांस्कृतिक जीवन एवं मातृभाषा' विषयक संगोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि भाषा में बदलाव के कारण हमारा जीवन लगातार बदल रहा है हमारे पूर्वजों ने जो विचार व विरासत दी है उसे बचाना आज की जरूरत है। एकता और विविधता हमारी संस्कृति की पहचान है,प्रेम हमारे समाज की विराटता है ।राधा-कृष्ण और सीता-राम का प्रेम इसका अद्भुत उदाहरण है। उन्होंने कहा कि यह हमारी संस्कृति जिस पर हम गर्व करते हैं वह बहुत ही महान और सर्वधर्म समभाव वाली है। हमारी संस्कृति हमें स्वाभिमानी बनाती है इसे हम गंगा जमुनी संस्कृति के नाम से जानते हैं। उन्होंने कहा कि जिसका जीवन मूल्यों से भरा होगा वही कुछ बड़ा कर सकता है हमारी संस्कृति को महान बनाने में हमारी भाषाओं का विशेष योगदान है हमारी विविधता ने हमें समृद्ध बनाया है,हमारी संस्कृति को हमारे ऋषि और संतों ने हमें विरासत में दिया है हमें उस विरासत की रक्षा करनी है तभी हम अपनी मातृभाषा को भी बचा पाएंगे और अपनी संस्कृति को भी।
संगोष्ठी में विशिष्ट वक्ता के रूप में बोलते हुए प्रधानाचार्य सर्वेश कुमार दुबे ने कहा कि संस्कृति व भाषा बचाने के लिए लड़ना पड़ता है। हमें सभी भाषाओं का ज्ञान रखना चाहिए लेकिन अपनी भाषा को बचाना हमारा आज का सबसे बड़ा दायित्व है । उन्होंने कहा कि हमारे सभी काम अपनी भाषा में होने चाहिए मातृभाषा को जितना हम छोड़ते जा रहे हैं हमारे बीच से प्रेम उतना ही कम होता जा रहा है। उन्होंने कहा की निज भाषा का सम्मान अगर हम करेंगे तभी हमारी उन्नति संभव है।
संगोष्ठी का विषय प्रवर्तन करते हुए शिक्षक व पत्रकार चक्रपाणि ओझा ने कहा कि कई दशकों से विभिन्न शिक्षा आयोगों ने मातृभाषा को प्राथमिक शिक्षा में अनिवार्य करने का सुझाव दिया है यह कोई नई बात नहीं है। हमें अपनी स्कूली शिक्षा मातृभाषा में अनिवार्य रुप से मिलनी ही चाहिए व अंग्रेजी को प्राथमिक शिक्षा से बाहर करना होगा । इसके साथ ही पड़ोसी और समान स्कूल की शिक्षा व्यवस्था पूरे देश में कायम करनी होगी। उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति पर आज उपभोक्तावादी, बाजारवादी संस्कृति ने कब्जा कर लिया है बाजारवादी शक्तियां अपने मुनाफे के लिए अपनी
अपसंस्कृति हम पर थोप रही हैं। आज हमें सांस्कृतिक रूप से भ्रष्ट बनाने की कोशिशें हो रही हैं हमारी हिंदी और भोजपुरी पढ़े लिखे लोगों के लिए सम्मान का विषय नहीं रह गई हैं। उन्होंने कहा कि हमारे समाज के पढ़े-लिखे लोग अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में पढ़ा कर गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं यह बेहद ही चिंताजनक है। हम अपनी मातृभाषा को बचाकर ही अपनी संस्कृति को भी सुरक्षित कर पाएंगे।
इस अवसर पर बोलते हुए शिक्षक वीरेंद्र यादव ने कहा कि अगर मातृभाषा जीविकोपार्जन की सुविधा नहीं दे पाएगी तो वह धीरे-धीरे लुप्त हो जाएगी। उन्होंने कहा कि सरकार ने नई नई परीक्षा एजेंसियां बनाकर युवाओं को गुमराह कर रही हैं और पहले से परीक्षाएं पास कर बैठे नौजवान रोजगार की तलाश कर रहे हैं। हमें अपनी मातृभाषा को रोजगार और तकनीक से लैस करना होगा।
संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ चिंतक कामरेड राम सिंहासन तिवारी ने कहा कि मातृभाषा मां के समान होती है हमें इसकी सुरक्षा हर हाल में करनी चाहिए । उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति पूरे विश्व को अपना घर समझने वाली है, हमें अपनी इस गौरवशाली भारतीय संस्कृति जोकि सबको बराबरी के आधार पर देखती है इसे अंग्रेजीयत से बचाना आज की सबसे बड़ी जरूरत है ।
इसके पूर्व अतिथियों का स्वागत करते हुए महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ अरविंद कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि पाश्चात्य संस्कृति ने हमारी संस्कृति को प्रभावित किया है लोग उसका नकल कर रहे हैं। हमारी भारतीय संस्कृति सर्वोत्तम थी डॉ श्रीवास्तव ने कहा कि अपनी मातृभाषा का परित्याग नहीं होना चाहिए क्योंकि मातृभाषा का उत्थान ही देश का उत्थान है। संगोष्ठी में आभार ज्ञापन उप प्राचार्य डॉ अभय कुमार त्रिपाठी ने करते हुए कहा कि बालक के समग्र विकास होने में मातृभाषा का विशेष महत्व होता है।
डॉ त्रिपाठी ने कहा कि संस्कृति हमारी धरोहर है उसे बचाना हमारा दायित्व है। संगोष्ठी का सफल संचालन भूगोल प्रवक्ता आदित्य भास्कर ने किया। संगोष्ठी का आयोजन शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास गोरक्ष प्रांत द्वारा मातृभाषा सप्ताह के अंतर्गत किया गया।
इस अवसर पर मुख्य रूप से सुशील तिवारी,कविता सिंह, बंदना जायसवाल,रविंद्र यादव, राजू प्रजापति,आशीष शर्मा, मनोज प्रजापति आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।
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